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सूरा-ए-लुक़मान |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
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अलिफ़ लाम मीम |
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ये हिकमत से भरी हुई
किताब की आयतें हैं |
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जो उन नेक (अच्छे)
किरदार लोगों के लिए हिदायत और रहमत है |
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जो नमाज़ क़ायम करते
हैं और ज़कात अदा करते हैं और आखि़रत पर यक़ीन रखते हैं |
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यही लोग अपने
परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से हिदायत पर हैं और यही फ़लाह (कामयाबी) पाने
वाले हैं |
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6 |
लोगों में ऐसा शख़्स
भी है जो महमिल (बेहूदा) बातों को ख़रीदता है ताकि उनके ज़रिये बग़ैर समझे बूझे
लोगों को राहे ख़ुदा से गुमराह करे और आयाते इलाहिया (अल्लाह की निशानियों) का
मज़ाक़ उड़ाए दर हक़ीक़त ऐसे ही लोगों के लिए दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब है |
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और जब उसके सामने
आयाते इलाहिया की तिलावत की जाती है तो अकड़ कर मुँह फेर लेता है जैसे उसने कुछ
सुना ही नहीं है और जैसे उसके कान में बहरापन है। ऐसे शख़्स को दर्दनाक (दर्द
देने वाला) अज़ाब की बशारत दे दीजिए |
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बेशक जो लोग ईमान लाये
और उन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (कामों) किये उनके लिए नेअमतों से भरी हुई जन्नत
है |
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वह इसी में हमेशा रहने
वाले हैं कि ये ख़ुदा का बर हक़ वादा है और वह साहेबे इज़्ज़त भी है और साहेबे
हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) भी है |
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10 |
उसी ने आसमानों को
बग़ैर सुतून के पैदा किया है तुम देख रहे हो और ज़मीन में बड़े बड़े पहाड़ डाल
दिये हैं कि तुम को लेकर जगह से हटने न पाये और हर तरह के जानवर फैला दिये हैं
और हमने आसमान से पानी बरसाया है और उसके ज़रिये ज़मीन में हर कि़स्म का नफ़ीस
जोड़ा पैदा कर दिया है |
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11 |
ये ख़ुदा की तख़्लीक़
(बनाई हुई) है तो काफि़रो (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार
करने वाले) अब तुम दिखलाओ कि उसके अलावा तुम्हारे ख़ुदाओं ने क्या पैदा किया है
और हक़ीक़त ये है कि ज़ालेमीन (ज़्ाुल्म करने वाले) खुली हुई गुमराही में
मुब्तिला हैं |
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12 |
और हमने लुक़मान को
हिकमत अता की के परवरदिगार (पालने वाले) का शुक्रिया अदा करो और जो भी शुक्रिया
अदा करता है वह अपने ही फ़ायदे के लिए करता है और जो कुफ्ऱाने नेअमत (नेमत का
इन्कार) करता है उसे मालूम रहे कि ख़ुदा बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत
नहीं) भी है और क़ाबिले हम्द (तारीफ़) व सना भी है |
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और उस वक़्त को याद
करो जब लुक़मान ने अपने फ़रज़न्द (बेटा) को नसीहत (अच्छी बातों का बयान) करते हुए कहा कि बेटा ख़बरदार किसी को ख़ुदा
का शरीक न बनाना कि शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) बहुत बड़ा जु़ल्म
है |
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14 |
और हमने इन्सान को माँ
बाप के बारे में नसीहत (अच्छी बातों का बयान)
की है कि उसकी माँ ने दुख पर दुख सहकर उसे पेट में रखा है और उसकी दूध
बढ़ाई भी दो साल में हुई है...........कि मेरा और अपने माँ बाप का शुक्रिया अदा
करो कि तुम सबकी बाज़गश्त (लौटना, वापसी) मेरी ही तरफ़ है |
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और अगर तुम्हारे माँ
बाप इस बात पर ज़ोर दें कि किसी ऐसी चीज़ को मेरा शरीक बनाओ जिसका तुम्हें इल्म
नहीं है तो ख़बरदार उनकी इताअत (कहने पर अमल) न करना लेकिन दुनिया में उनके साथ
नेकी का बरताव करना और उसके रास्ते को इखि़्तयार करना जो मेरी तरफ़ मुतावज्जे हो
फिर इसके बाद तुम सबकी बाज़गश्त (लौटना, वापसी) मेरी ही तरफ़ है और उस वक़्त मैं
बताऊँगा कि तुम लोग क्या रहे थे |
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बेटा नेकी या बदी
(बुराई) एक राई के दाने के बराबर हो और किसी पत्थर के अन्दर हो या आसमानों पर हो
या ज़मीनों की गहराईयों में हो तो ख़ुदा रोज़े क़यामत ज़रूर इसे सामने लायेगा कि
वह लतीफ़ (बारीक बीन) भी है और बा ख़बर भी है |
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बेटा नमाज़ क़ायम करो,
नेकियों का हुक्म दो, बुराईयों से मना करो, और इस राह में जो मुसीबत पड़े उस पर
सब्र करो कि ये बहुत बड़ी हिम्मत का काम है |
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और ख़बरदार लोगों के
सामने अकड़ कर मुँह न फुला लेना और ज़मीन में गु़रूर के साथ न चलना कि ख़ुदा
अकड़ने वाले और मग़रूर (ग़्ाुरूर करने वाले) को पसन्द नहीं करता है |
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और अपनी रफ़्तार में
मियानारवि से काम लेना और अपनी आवाज़ को धीमा रखना कि सबसे बदतर (सबसे बुरी)
आवाज़ गधे की आवाज़ होती है (जो बिला सबब (बिला वजह) भोंडे अंदाज़ से चीख़ता
रहता है) |
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क्या तुम लोगों ने
नहीं देखा कि अल्लाह ने ज़मीन व आसमान की तमाम चीज़ों को तुम्हारे लिए मुसख़्ख़र
कर दिया है और तुम्हारे लिए तमाम ज़ाहिरी और बातिनी नेअमतों को मुकम्मल कर दिया
है और लोगों में बाज़ (कुछ) ऐसे भी हैं जो इल्म व हिदायत और रौशन किताब के बगै़र
भी ख़ुदा के बारे में बहस करते हैं |
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और जब उनसे कहा जाता
है कि जो कुछ अल्लाह ने नाजि़ल किया है उसका इत्तेबा (पैरवी) करो तो कहते हैं कि
हम इसका इत्तेबा (पैरवी) करते हैं जिस पर अपने बाप दादा को अमल करते देखा है
चाहे शैतान इनको अज़ाबे जहन्नम की तरफ़ दावत दे रहा हो |
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और जो अपना रूए हयात
(जि़न्दगी) ख़ुदा की तरफ़ मोड़ दे और वह नेक (अच्छा) किरदार भी हो तो उसने
रीसमाने हिदायत (हिदायत की रस्सी) को मज़बूती से पकड़ लिया है और तमाम उमूर
(मामलों) का अंजाम अल्लाह की तरफ़ है |
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और जो कुफ्ऱ (ख़ुदा
या उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) इखि़्तयार कर ले उसके कुफ्ऱ (ख़ुदा या
उसके हुक्म/निशानियों का इन्कार करना) से तुमको रंजीदा (अफ़सोसनाक) नहीं होना
चाहिए कि सबकी बाज़गश्त (लौटना, वापसी) हमारी ही तरफ़ है और उस वक़्त हम
बतायेंगे कि उन्होंने क्या किया है बेशक अल्लाह दिलों के राज़ों को भी जानता है |
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हम उन्हें थोड़े दिन
तक आराम देंगे और फिर सख़्त तरीन (सबसे सख़्त) अज़ाब की तरफ़ खींच कर ले आयेंगे |
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अगर अगर आप उनसे सवाल
करें कि ज़मीन व आसमान का ख़ालिक़ (पैदा करने वाला) कौन है तो कहेंगे कि अल्लाह
तो फिर कहिये कि सारी हम्द (तारीफ़) अल्लाह के लिए है और उनकी अकसरियत
(ज़्यादातर लोग) बिल्कुल जाहिल है |
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अल्लाह ही के लिए
ज़मीन व आसमान की तमाम चीज़ें हैं और वही बेनियाज़ (जिसे कोई/किसी चीज़ की
ज़रूरत नहीं) भी है और क़ाबिले सताईश (तारीफ़) भी |
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और अगर रूए ज़मीन के
तमाम दरख़्त (पेड़) क़लम बन जायें और समन्दर का सहारा देने के लिए सात समन्दर और
आ जायें तो भी कलेमाते इलाही (अल्लाह के कलाम) तमाम (ख़त्म) होने वाले नहीं हैं
बेशक अल्लाह साहेबे इज़्ज़त भी है और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) भी है |
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तुम सबकी खि़ल्क़त और
तुम सबका दोबारा जि़न्दा करना सब एक ही आदमी जैसा है और अल्लाह यक़ीनन सब कुछ
सुनने वाला और देखने वाला है |
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क्या तुमने नहीं देखा
कि ख़ुदा ही रात को दिन में और दिन को रात में दाखि़ल करता है और उसने चाँद और
सूरज को मुसख़्ख़र (इखि़्तयार में) कर दिया है कि सब एक मुअय्यन मुद्दत (तय किये
हुए वक़्त) तक चलते रहेंगे और अल्लाह तुम्हारे तमाम आमाल (कामों) से बाख़बर है |
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ये सब इसलिए है कि
ख़ुदा माबूदे बरहक़ है और उसके अलावा जिसको भी ये लोग पुकारते हैं वह सब बातिल
(झूठ) हैं और अल्लाह बलन्द व बाला और बुज़र््ाुग व बरतर (बड़ाई वाला) है |
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क्या तुमने नहीं देखा
कि नेअमते ख़ुदा ही से कश्तियां दरिया में चल रही हैं ताकि वह तुम्हें अपनी
निशानियां दिखलाये कि इसमें तमाम सब्र व शुक्र करने वालों के लिए बड़ी निशानियां
पायी जाती हैं |
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और जब सायबानों की तरह
कोई मौज उन्हें ढाँकने लगती है तो दीन के पूरे एख़लास (ख़ुलूस) के साथ ख़ुदा को
आवाज़ देते हैं और जब वह निजात (छुटकारा, रिहाई) देकर खु़श्की तक पहुंचा देता है
तो इसमें से कुछ ही एतेदाल (मियाना रवी) पर रह जाते हैं और हमारी आयात का इन्कार
ग़द्दार और नाशुक्रे अफ़राद (लोगों) के अलावा कोई नहीं करता है |
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इन्सानों! अपने
परवरदिगार (पालने वाले) से डरो और उस दिन से डरो जिस दिन न बाप बेटे के काम
आयेगा और न बेटा बाप के कुछ काम आ सकेगा बेशक अल्लाह का वादा बर हक़ (सच्चा) है
लेहाज़ा (इसलिये) तुम्हें जि़न्दगानी दुनिया धोके में न डाल दे और ख़बरदार कोई
धोका देने वाला भी तुम्हें धोका न दे सके |
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यक़ीनन अल्लाह ही के
पास क़यामत का इल्म है और वही पानी बरसाता है और शिकम (गोद, पेट) के अन्दर का
हाल जानता है और कोई नफ़्स (जान) ये नहीं जानता है कि वह कल क्या कमायेगा और
किसी को नहीं मालूम है कि उसे किस ज़मीन पर मौत आयेगी बेशक अल्लाह जानने वाला और
बाख़बर है |
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