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सूरा-ए-अनकबूत |
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अज़ीम और दाएमी (हमेशा
बाक़ी रहने वाली) रहमतों वाले ख़ुदा के नाम से शुरू। |
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1 |
अलिफ़ लाम मीम |
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2 |
क्या लोगों ने यह
ख़्याल कर रखा है कि वह सिर्फ़ इस बात पर छोड़ दिये जायेंगे कि वह ये कह दें कि
हम ईमान ले आये हैं और उनका इम्तिहान नहीं होगा |
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3 |
बेशक हमने इनसे पहले
वालों का भी इम्तिहान लिया है और अल्लाह तो बहरहाल (हर तरह से, हर हाल में) ये
जानना चाहता है कि इनमें कौन लोग सच्चे हैं और कौन झूठे हैं |
29 |
4 |
क्या बुराई करने वालों
का ख़्याल ये है कि हमसे आगे निकल जायेंगे ये बहुत ग़लत फ़ैसला कर रहे हैं |
29 |
5 |
जो भी अल्लाह की
मुलाक़ात की उम्मीद रखता है उसे मालूम रहे कि वह मुद्दत (वक़्त) यक़ीनन आने वाली
है और वह ख़ुदा समीअ (सब सुनने वाला) भी है और अलीम (सब जानने वाला) भी है |
29 |
6 |
और जिसने भी जेहाद
किया है उसने अपने लिए जेहाद किया है और अल्लाह तो सारे आलमीन से बेनियाज़ (जिसे
कोई/किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं) है |
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7 |
और जो लोग ईमान लाये
और उन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (काम) किये हम यक़ीनन उनके गुनाहों की पर्दापोशी
(छुपाए रखना) करेंगे और उन्हें उनके आमाल (कामों) की बेहतरीन (सबसे अच्छी) जज़ा (सिला) अता करेंगे |
29 |
8 |
और हमने इंसान को माँ
बाप के साथ नेक (अच्छा) बरताव करने की नसीहत (अच्छी बात जो बताई जाए) की है और
बताया है कि अगर वह किसी ऐसी शै को मेरा शरीक बनाने पर मजबूर करें जिसका तुम्हें
इल्म नहीं है तो ख़बरदार उनकी इताअत (कहने पर अमल) न करना कि तुम सबकी बाज़गश्त
(लौटना, वापसी) मेरी ही तरफ़ है फिर मैं बताऊँगा कि तुम लोग क्या कर रहे थे |
29 |
9 |
और जिन लोगों ने ईमान
इखि़्तयार और किया और नेक (अच्छा) आमाल (काम) किये हम यक़ीनन उन्हें नेक (अच्छा)
बन्दों में शामिल कर लेंगे |
29 |
10 |
और बाज़ (कुछ) लोग ऐसे
हैं जो कहते हैं कि हम अल्लाह पर ईमान ले आये इसके बाद जब राहे ख़ुदा में कोई
तकलीफ़ हुई तो लोगों के फि़त्ने को अज़ाबे ख़ुदा जैसा क़रार दे दिया हालांकि
आपके परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से कोई मदद आ जाती तो फ़ौरन कह देते कि हम
तो आप ही के साथ थे तो क्या ख़ुदा उन बातों से बाख़बर नहीं है जो आलमीन (सारे
जहान) के दिलों में है |
29 |
11 |
और वह यक़ीनन उन्हें
भी जानना चाहता है जो साहेबाने ईमान हैं और उन्हें भी जानना चाहता है जो
मुनाफि़क़ (दिल में कुफ्ऱ रखने वाले) हैं |
29 |
12 |
और ये कुफ़्फ़ार
(ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) ईमान लाने वालों से कहते हैं कि तुम
हमारे रास्ते का इत्तेबा (पैरवी) कर लो हम तुम्हारे गुनाहों के जि़म्मेदार हैं
हालांकि वह किसी के गुनाहों का बोझ उठाने वाले नहीं है और सरासर झूठे हैं |
29 |
13 |
और उन्हें एक दिन अपना
बोझ भी उठाना ही पड़ेगा और इसके साथ उन लोगों का भी और रोज़े क़यामत उनसे इन
बातों के बारे में सवाल भी किया जायेगा जिनका ये इफि़्तरा (इल्ज़ाम लगाना) किया
करते थे |
29 |
14 |
और हमने नूह
(अलैहिस्सलाम) को उनकी क़ौम की तरफ़ भेजा और वह उनके दरम्यान (बीच में) पचास साल कम एक हज़ार साल रहे फिर क़ौम को
तूफ़ान ने अपनी गिरफ़्त (पकड़) में ले
लिया कि वह लोग ज़ालिम थे |
29 |
15 |
फिर हमने नूह
(अलैहिस्सलाम) को और उनके साथ कश्ती वालों को निजात (छुटकारा, रिहाई) दे दी और
इसे आलमीन के लिए एक निशानी क़रार दे दिया |
29 |
16 |
और इब्राहीम को याद
करो जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि अल्लाह की इबादत करो और उससे डरो कि इसी
में तुम्हारे लिए बेहतरी है अगर तुम कुछ जानते हो |
29 |
17 |
तुम ख़ुदा को छोड़कर
सिर्फ़ बुतों की परस्तिश (पूजा, इबादत) करते हो और अपने पास से झूठ गढ़ते हो याद
रखो कि ख़ुदा के अलावा जिनकी भी परस्तिश (पूजा, इबादत) करते हो वह तुम्हारे
रिज़्क़ के मालिक नहीं है रिज़्क़ ख़ुदा के पास तलाश करो और उसी की इबादत करो और
उसी का शुक्रिया अदा करो कि तुम सब उसी की बारगाह में वापस ले जाये जाओगे |
29 |
18 |
और अगर तुम तकज़ीब
(झुठलाना) करोगे तो तुमसे पहले बहुत सी क़ौमें ये काम कर चुकी हैं और रसूल की
जि़म्मेदारी तो सिर्फ़ वाज़ेह तौर पर पैग़ाम का पहुंचा देना है |
29 |
19 |
क्या इन लोगों ने नहीं
देखा कि ख़ुदा किस तरह मख़लूक़ात (पैदा की हुई खि़लक़त या शै) को ईजाद (बनाना)
करता है और फिर दोबारा वापस ले जाता है ये सब अल्लाह के लिए बहुत आसान है |
29 |
20 |
आप कह दीजिए कि तुम
लोग ज़मीन में सैर करो और देखो कि ख़ुदा ने किस तरह खि़ल्क़त का आग़ाज़ किया है
इसके बाद वही आखि़रत में दोबारा ईजाद करेगा बेशक वही हर शै पर कु़दरत रखने वाला
है |
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21 |
वह जिस पर चाहता है
अज़ाब करता है और जिस पर चाहता है रहम करता है और तुम सब उसी की तरफ़ पलटाये
जाओगे |
29 |
22 |
और तुम ज़मीन या आसमान
में उसे आजिज़ (परेशान) कर सकने वाले नहीं हो और उसके अलावा तुम्हारा कोई
सरपरस्त या मददगार भी नहीं है |
29 |
23 |
और जो लोग ख़ुदा की
निशानियों और उसकी मुलाक़ात का इंकार करते हैं वह मेरी रहमत से मायूस हैं और
उनके लिए दर्दनाक (दर्द देने वाला) अज़ाब है |
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24 |
तो उनकी क़ौम का जवाब
इसके अलावा कुछ न था कि उन्हें क़त्ल कर दो या आग में जला दो.........तो
परवरदिगार (पालने वाले) ने उन्हें इस आग से निजात (छुटकारा, रिहाई) दिला दी बेशक
इसमें भी साहेबाने ईमान के लिए बहुत सी निशानियां पायी जाती हैं |
29 |
25 |
और इब्राहीम ने कहा कि
तुमने सिर्फ़ जि़न्दगानी दुनिया की मोहब्बतों को बरक़रार रखने के लिए ख़ुदा को
छोड़कर बुतों को इखि़्तयार कर लिया है इसके बाद रोज़े क़यामत तुम में से हर एक
दूसरे का इंकार करेगा और एक दूसरे पर लाॅनत करेगा जबकि तुम सबका अंजाम जहन्नम
होगा और तुम्हारा कोई मददगार (मदद करने वाला) न होगा |
29 |
26 |
फिर लूत इब्राहीम पर
ईमान ले आये और उन्होंने कहा कि मैं अपने रब की तरफ़ हिजरत कर रहा हूँ कि वही
साहेबे इज़्ज़त और साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है |
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27 |
और हमने उन्हें इसहाक़
और याक़ू़ब जैसी औलाद अता की और फिर उनकी ज़्ाु़र्रियत (नस्ल) में किताब और
नबूवत क़रार दी और उन्हें दुनिया में भी इनका अज्र (सिला) अता किया और आखि़रत
में भी इनका शुमार नेक (अच्छा) किरदार लोगों में होगा |
29 |
28 |
और फिर लूत को याद करो
जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग ऐसी बदकारी कर रहे हो जो सारे आलम में
तुम से पहले कभी किसी ने भी नहीं की है |
29 |
29 |
तुम लोग मर्दो से
जिन्सी ताल्लुक़ात पैदा कर रहे हो और रास्ते क़ता (ख़त्म) कर रहे हो और अपनी
महफि़लों में बुराईयों को अंजाम दे रहे हो... तो उनकी क़ौम के पास इसके अलावा
कोई जवाब न था कि अगर तुम सादेक़ीन (सच्चों) में से हो तो वह अज़ाबे इलाही ले आओ
जिसकी ख़बर दे रहे हो |
29 |
30 |
तो लूत ने कहा
परवरदिगार (पालने वाले) तू इस फ़साद (लड़ाई-झगड़ा) फैलाने वाली क़ौम के मुक़ाबले
में मेरी मदद फ़रमा |
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31 |
और जब हमारे नुमाईन्दे
फ़रिश्ते इब्राहीम के पास बशारत (ख़ुशख़बरी) लेकर आये और उन्होंने ये ख़बर सुनाई
कि हम इस बस्ती वालों को हलाक (बरबाद, ख़त्म) करना चाहते हैं के इस बस्ती के लोग
बड़े ज़ालिम हैं |
29 |
32 |
तो इब्राहीम ने कहा कि
इसमें तो लूत भी हैं। उन्होंने जवाब दिया कि हम सबसे बाख़बर (जानने वाले) हैं।
हम उन्हें और उनके घर वालों को निजात (छुटकारा, रिहाई) दे देंगे अलावा उनकी
ज़ौजा (बीवी) के, कि वह पीछे रह जाने वालों में है |
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33 |
फिर जब हमारे फ़रिश्ते
लूत के पास आये तो वह परेशान हो गये और उनकी मेहमानी (मेहमान बनाने) की तरफ़ से
दिल तंग (परेशान) होने लगे उन लोगों ने कहा कि आप डरें नहीं और परेशान न हों हम
आपको और आपके घर वालों को बचा लेंगे सिर्फ़ आपकी ज़ौजा (बीवी) को नहीं कि वह
पीछे रह जाने वालों में हो गई हैं |
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34 |
हम इस बस्ती पर आसमान
से अज़ाब नाजि़ल करने वाले हैं कि ये लोग बड़ी बदकारी (बुरे काम) कर रहे हैं |
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35 |
और हमने इस बस्ती में
से साहेबाने अक़्ल व होश (अक़्ल व होश रखने वालों) के लिए खुली हुई निशानी बाक़ी
रखी है |
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36 |
और हमने मदियन की तरफ़
उनके भाई शोएब को भेजा तो उन्होंने कहा कि लोगों अल्लाह की इबादत करो और रोज़े
आखि़रत से उम्मीदें वाबस्ता (जोड़े रखना) करो और ख़बरदार ज़मीन में फ़साद
(लड़ाई-झगड़ा) न फैलाते फिरो |
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37 |
तो इन लोगों ने उन्हें
झुठला दिया और नतीजे में उन्हंे एक ज़लज़ले (भूचाल) ने अपनी गिरफ़्त (पकड़) में
ले लिया और वह अपने घरों में औंधे ज़ानू के भल पड़े रहे |
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38 |
और आद व समूद को याद
करो कि तुम लोगों के लिए उनके घर भी सरे राह वाज़ेह हो चुके हैं और शैतान ने
इनके लिए इनके आमाल (कामों) को आरास्ता (सजा कर पेश) कर दिया था और उन्हें
रास्ते से रोक दिया था हालांकि वह लोग बहुत होशियार थे |
29 |
39 |
और क़ारून, फि़रऔन व
हामान को भी याद दिलाओ जिनके पास मूसा खुली हुई निशानियां लेकर आये तो इन लोगों
ने ज़मीन में अस्तकबार (सरकशी) से काम लिया हालांकि वह हमसे आगे जाने वाले नहीं
थे |
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40 |
फिर हमने एक को उसके
गुनाह में गिरफ़्तार कर लिया किसी पर आसमान से पत्थरों की बारिश कर दी किसी को
एक आसमानी चीख़ ने पकड़ लिया और किसी को ज़मीन में धंसा दिया और किसी को पानी
में ग़कऱ् (डुबोना) कर दिया और अल्लाह किसी पर जु़ल्म करने वाला नहीं है बल्कि
ये लोग ख़ुद अपने नफ़्स (जान) पर जु़ल्म कर रहे हैं |
29 |
41 |
और जिन लोगों ने ख़ुदा
को छोड़कर दूसरे सरपरस्त बना लिये हैं उनकी मिसाल मकड़ी जैसी है कि उसने घर तो
बना लिया लेकिन सबसे कमज़ोर घर मकड़ी का घर होता है अगर इन लोगों के पास इल्म व
इदराक (अक़्ल, समझ) हो |
29 |
42 |
बेशक अल्लाह ख़ू़ब
जानता है कि उसे छोड़कर ये लोग किसे पुकार रहे हैं और वह बड़ी इज़्ज़त वाला और
साहेबे हिकमत (अक़्ल, दानाई वाला) है |
29 |
43 |
और ये मिसालें हम तमाम
आलमे इन्सानियत (सभी इन्सानों) के लिए बयान कर रहे हैं लेकिन उन्हें साहेबाने
इल्म (इल्म वालों) के अलावा कोई नहीं समझ सकता है |
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44 |
अल्लाह ने आसमान और
ज़मीन को हक़ के साथ पैदा किया है और इसमें साहेबाने ईमान (ईमान वालों) के लिए
उसकी कु़दरत की निशानी पायी जाती है |
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45 |
आप जिस किताब की आप की
तरफ़ वही (इलाही पैग़ाम) की गई है उसे पढ़कर सुनायें और नमाज़ क़ायम करें के
नमाज़ हर बुराई और बदकारी (बुरे काम) से रोकने वाली है और अल्लाह का जि़क्र बहुत
बड़ी शै है और अल्लाह तुम्हारे कारोबार से खू़ब बाख़बर है |
29 |
46 |
और अहले किताब से
मनाज़ेरा (इल्मी गुफ़्तगू) न करो मगर इस अंदाज़ से जो बेहतरीन (सबसे अच्छा)
अंदाज़ है अलावा उनके जो इनमें से ज़ालिम हैं और ये कहो कि हम उस पर ईमान लाये
हैं जो हमारी और तुम्हारी दोनों की तरफ़ नाजि़ल हुआ है और हमारा और तुम्हारा
ख़ुदा एक ही है और हम सब उसी के इताअत (कहने पर अमल) गुज़ार हैं |
29 |
47 |
और इसी तरह हमने आपकी
तरफ़ किताब नाजि़ल की तो जिन लोगों को हमने किताब दी है वह इस किताब पर ईमान
रखते हैं और इन में से भी बाज़ (कुछ) लोग ईमान रखते हैं और हमारी आयात का इन्कार
काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वाले) के अलावा
कोई नहीं करता है |
29 |
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और ऐ पैग़म्बर आप इस
कु़रआन से पहले न कोई किताब पढ़ते थे और न अपने हाथ से कुछ लिखते थे वरना ये
अहले बातिल शुबाह (शक) में पड़ जाते |
29 |
49 |
दर हक़ीक़त (अस्ल में)
ये कु़रआन चन्द (कुछ) खुली हुई आयतों का नाम है जो उनके सीनों में महफ़ूज़
(हिफ़ाज़त के साथ) है जिन्हें इल्म दिया गया है और हमारी आयात का इन्कार
ज़ालिमों के अलावा कोई नहीं करता है |
29 |
50 |
और ये लोग कहते हैं कि
आखि़र उन पर परवरदिगार (पालने वाले) की तरफ़ से आयात क्यों नहीं नाजि़ल होती हैं
तो आप कह दीजिए कि आयात सब अल्लाह के पास हैंै और मैं तो सिर्फ़ वाज़ेह तौर पर
अज़ाबे इलाही से डराने वाला हूँ |
29 |
51 |
क्या उनके लिए ये
काफ़ी नहीं है कि हमने आप पर किताब नाजि़ल की है जिसकी इनके सामने तिलावत की
जाती है और यक़ीनन इसमें रहमत और ईमानदार क़ौम के लिए यादे दहानी का सामान मौजूद
है |
29 |
52 |
आप कह दीजिए कि हमारे
और तुम्हारे दरम्यान (बीच में) गवाही के लिए ख़ुदा काफ़ी है जो आसमान और ज़मीन
की हर चीज़ से बा ख़बर है और जो लोग बातिल (झूठ) पर ईमान रखते हैं और अल्लाह का
इन्कार करते हैं वह यक़ीनन ख़सारा (घाटा, नुक़सान) उठाने वाले लोग हैं |
29 |
53 |
और ये लोग अज़ाब की
जल्दी कर रहे हैं हालांकि अगर इसका वक़्त मुअय्यन (तय) न होता तो अब तक अज़ाब आ
चुका होता और वह अचानक ही आयेगा जब उन्हें शऊर (समझ) भी न होगा |
29 |
54 |
ये अज़ाब की जल्दी कर
रहे हैं हालांकि जहन्नम यक़ीनन काफि़रों (कुफ्ऱ करने वाले, ख़ुदा या उसके हुक्म
का इन्कार करने वाले) को अपने घेरे में लेने वाला है |
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55 |
जिस दिन अज़ाब उन्हें
ऊपर से और नीचे से ढाँक लेगा और कहेगा कि अब अपने आमाल (कामों) का मज़ा चखो |
29 |
56 |
मेरे ईमानदार बन्दों!
मेरी ज़मीन बहुत वसीअ (फैलाव वाली) है लेहाज़ा (इसलिये) मेरी ही इबादत करो |
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हर नफ़्स (जान) मौत का
मज़ा चखने वाला है इसके बाद तुम सब हमारी बारगाह में पलटा कर लाये जाओगे |
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और जो लोग ईमान लाये
हैं और उन्होंने नेक (अच्छा) आमाल (काम) किये हैं उन्हें हम जन्नत के झरोकों में
जगह देंगे जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और वह हमेशा उन्हीं में रहेंगे कि ये उन
अमल करने वालों का बेहतर (सबसे अच्छा) अज्र (सिला) है |
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59 |
जिन लोगों ने सब्र
किया है और अपने परवरदिगार (पालने वाले) पर भरोसा करते हैं |
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60 |
और ज़मीन पर चलने वाले
बहुत से ऐसे भी हैं जो अपनी रोज़ी का बोझ नहीं उठा सकते हैं लेकिन ख़ुदा उन्हें
और तुम्हें सबको रिज़्क़ दे रहा है और वह सबकी सुनने वाला और सब के हालात का
जानने वाला है |
29 |
61 |
और अगर आप उनसे
पूछेंगे कि आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया है और आफ़ताब (सूरज) व महताब
(चाँद) को किसने मुसख़्ख़र (इखि़्तयार में) किया है तो फ़ौरन कहेंगे कि अल्लाह,
तो ये किधर बहके चले जा रहे हैं |
29 |
62 |
अल्लाह ही जिसके
रिज़्क़ में चाहता है वुसअत (फैलाव, बरकत) पैदा कर देता है और जिसके रिज़्क़ को
चाहता है तंग (कम) कर देता है वह हर शै का खू़ब जानने वाला है |
29 |
63 |
और अगर आप उनसे
पूछेंगे किसने आसमान से पानी बरसाया है और फिर ज़मीन को मुर्दा होने के बाद
जि़न्दा किया है तो ये कहेंगे कि अल्लाह ही है तो फिर कह दीजिए कि सारी हम्द
(तारीफ़) अल्लाह के लिए है और इनकी अकसरियत (ज़्यादातर लोग) अक़्ल का इस्तेमाल
नहीं कर रही है |
29 |
64 |
और ये जि़न्दगानी
दुनिया एक खेल तमाशे के सिवा कुछ नहीं है और आखि़रत का घर हमेशा की जि़न्दगी का
मरकज़ है अगर ये लोग कुछ जानते और समझते हों |
29 |
65 |
फिर जब ये लोग कश्ती
में सवार होते हैं तो ईमान व अक़ीदे के पूरे एख़लास (ख़ुलूस) के साथ ख़ुदा को
पुकारते हैं फिर जब वह निजात (छुटकारा, रिहाई) देकर ख़ु़श्की तक पहुंचा देता है
तो फ़ौरन शिर्क (ख़ुदा के साथ दूसरों को शरीक करना) इखि़्तयार कर लेते हैं |
29 |
66 |
ताकि जो कुछ हमने अता
किया है उसका इन्कार कर दें और दुनिया में मज़े उड़ायें तो अनक़रीब (बहुत जल्द)
उन्हें इसका अंजाम मालूम हो जायेगा |
29 |
67 |
क्या इन लोगों ने नहीं
देखा कि हमने इनके वास्ते एक महफ़ूज़ (हिफ़ाज़त के साथ) हरम बना दिया है जिसके
चारों तरफ़ लोग उचक लिये जाते हैं तो क्या ये बातिल पर ईमान रखते हैं और अल्लाह
की नेअमत का इनकार कर देते हैं |
29 |
68 |
और उससे बड़ा ज़ालिम
कौन है जो अल्लाह की तरफ़ झूठी बातों की निस्बत दे (बोहतान बांधे) या हक़ के आ
जाने के बाद भी उसका इन्कार कर दे तो क्या जहन्नम में कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके
हुक्म का इन्कार करने वालों) का ठिकाना नहीं है |
29 |
69 |
और जिन लोगों ने हमारे
हक़ में जेहाद किया है हम उन्हें अपने रास्तों की हिदायत करेंगे और यक़ीनन
अल्लाह हुस्ने अमल (नेकोकार लोगों) वालों के साथ है |
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